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अपने पचासवें वर्ष की यात्रा में अभिव्यक्ति की मासिक गोष्ठी

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 6 August:
अपने पचासवें वर्ष की यात्रा में अभिव्यक्ति की मासिक गोष्ठी
रचनाकार रह-रह कर टटोलते हैं अपना अतीत। उसी खजाने से बुआरकर सामायिक परिवेश की चुनौतियों के बीच बुनते हैं कविताएं, कहानियां और व्यंग्य आदि। समाज को एक आदर्श समाज में बदलने के जनून में शामिल हो जाते हैं। अभिव्यक्ति की पचासवें वर्ष की यात्रा में अगस्त माह की गोष्ठी में ट्राइसिटी के जाने माने वरिष्ठ और युवा साहित्यकारों ने डॉक्टर नवीन गुप्ता की मेजबानी और विजय कपूर के संयोजन और संचालन में पंजाब यूनिवर्सिटी के बैक हाउस में भाग लिया।
शुद्ध साहित्यिक माहोल में महिंदर कुमार सानी ने “अपनी सब उम्र लगा खुद को कमाते हुए हम/ और लम्हों में कमाई को गंवाते हुए हम, डॉक्टर कैलाश आहलूवालिया ने  “कृष्ण की बांसुरी सा एक क्षण/ बज उठता है मन मस्तिष्क में” विजय कपूर ने “समय से मैंने कई बार प्रार्थना की/ थोड़ा और ठहरो कि मंगलगान चल रहा है/ दिन अपने संघर्ष के साथ ढल रहा है।”
सुभाष भास्कर ने “सावन तो बहुत मदमस्त आता करता था/कल कल बहते शीतल जल के झरने लाया करता था। डॉक्टर नवीन गुप्ता ने “कोई लालच मुझे बेईमान कर नहीं सकता/ वन्ड-छको नानक की गुरबाणी याद है मुझे/ सर कट सकता है दस्तार नहीं उतर सकती/ गुरु गोबिंद सिंह जी की कुर्बानी याद है मुझे, शहला जावेद ने “यादों की किताब जब खोलती हूं कहीं/ यादों की झड़ी लग जाती है वहीं”, सारिका धूपड़ ने “वस्त्र सादे हां या फिर बघारें तामझाम”, अलका कांसरा ने “अक्सर भीगी रहती हैं पलकें पर कभी कभी आंसू नहीं बहते हैं”, बबिता कपूर ने “जीते जी ठिठुरना / जम जाने की हद तक/ बहुत मुश्किल रहा होगा/ डूबने से पहले”,
डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने “यही समय है/ सत्यातीत समय यही है।”
डॉक्टर रेखा वर्मा ने “जीवन की इन राहों में / हम उनके साथ चलते हैं। डॉक्टर सपना मल्होत्रा ने “हर पेड़ पर आती है एक उम्र / ऐसी बेमेल सी/ बाहर सूखा लकड़/ भीतर गीला, हरा, नरम, सतिंदर गिल ने “यह जो तुम मुझे नजरंदाज करते हो/ यह अहसान बार बार करते हो”, डॉक्टर सुनीत मदान ने “लझती उलझने  सुलझाती मैं”, डॉक्टर विमल कालिया ने “गहरे रंग के परदे”, सीमा गुप्ता ने “अक्का शिव से तुम्हें प्रेम क्यों है”, मोनिका  मीनू ने ” परिवर्तन जीवन का समावेश कर / जीवन में परिवर्तन का परिवेश कर, रीना मदान ने “अनुभूति की अभिव्यक्ति”, अश्वनी भीम ने ” मन चाहता है”, रजनीश कुमार ने “शाम  से  हर   और   है  छाई  उदासी/ याद  जब आई तेरी  लाई उदासी”, राजिंदर सराओ ने “महाकाल”, डॉक्टर निर्मल सूद ने, “नफरतों की आंधियां” और सोनिया ने  संजीदा काव्य रचनाओं का सुंदर पाठ किया।
गोष्ठी के दूसरे सत्र में वीना सेठी ने सुंदर संवाद आवाज-ध्वनि का पाठ किया। डॉक्टर पंकज ने असहाय महिला और उसके चहेते कुत्ते पर मार्मिक कहानी घर वापसी पढ़ी, अश्वनी भीम ने अपने व्यंग्य “उल्लू, गधा और मनुष्य”  से खूब गुदगदाया और अंत में डॉक्टर विमल कालिया एक बहुत ही संजीदा कहानी, “छकड़ा, छड़ी और छतरी” को ले कर आए। डॉक्टर नवीन गुप्ता ने सभी का धन्यवाद किया।
विजय कपूर, संयोजक और संचालक, अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था (1974 में स्थापित)

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