बेगम इकबाल बानो फाउंडेशन के पांचवें लिखत पोइटिका में कवियों और शायरों ने अद्भुत समा बांधा
Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 28 August:
बेगम इकबाल बानो फाउंडेशन के मासिक लिखत पोएटिका कार्यक्रम की पांचवीं कड़ी का आयोजन सेन्ट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से उनके सभागृह में आयोजित किया गया। साहित्यकार, अभिनेत्री, फिल्म डायरेक्टर और प्रोफेसर डॉक्टर विजया सिंह को अध्यक्षता में इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में चंडीगढ़ कवि, कहानीकार, अनुवादक और साहित्य अकादिमी के सचिव सुभाष भास्कर तथा विशेष अतिथि के रूप में कवि और पंजाब विजिलेंस ब्यूरो के ज्वाइंट डायरेक्टर अरुण सैनी और लाइब्रेरियन नीज़ा सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार रंगकर्मी और फाउंडेशन के डायरेक्टर विजय कपूर ने किया।
विजय कपूर ने बताया “बॉलीवुड के मशहूर गीतकार इरशाद कामिल ने यह फाउंडेशन अपनी मां के नाम से स्थापित की है ताकि युवाओं को अपनी माटी की कला और संस्कृति से जोड़ा जा सके। इसके अतिरिक्त यह फाउंडेशन शिक्षा और महिलाओं के उत्थान के क्षेत्र में भी अपना भरपूर योगदान दे रही है।”
चार भाषाओं के कवियों की इस खास महफिल में श्रोता झूम उठे। कवियों की रचनाओं के फलक का विस्तार आश्वस्त करता है कि कविता का सफर कभी खत्म नहीं हो सकता है। संवेदनात्मक अभिव्यक्ति के अनेक बिंब जन मानस को छू कर चुनौतियों से टकराते हैं। डॉक्टर विजया सिंह ने जहां हम कोमल हैं/ ठीक वहीं चुभेंगी कीलें/ हमारे नर्म तलवों पर/ कि हम न चल पाएंगे न ठहर/ भीतर ही भीतर जलेगा / अहम के साथ बहुत कुछ; सुभाष भास्कर ने बांधती भाई बहन के प्यार और अटूट विश्वास को/ रेशम की एक कच्ची डोर,
अरुण सैनी ने कदो तूं अपनी व्यस्त जिंदगी विचों दो पल कड/ इना ठंडे पै गए हथा दा निग बनेगी; विजय कपूर ने फ़्रेम से बाहर होते ही/ मैं बहस से बाहर हो गया/ और प्रेम से बाहर होते ही/ बंद हो गए आदान प्रदान के सभी विकल्प;
रजनीश कुमार ने बज्म मे सबसे मिलता था मगर कनखियों से देखता था मुझे, विशाल ने मोहब्बत से छूट कर नौकरी लगे जब/ पता चला बाप ने दिया था आराम अच्छा, गौरव राय ने आखिर दिन बदलेंगे चंद दिन और सही/ तेरे लहज़े में भी आमद होगी कुछ कसीदे और सही, प्रेम विज ने घरौंदे चांदनी के मीत मेरे मन बनाता है/सुलगती धूप के नीचे कोई सपने जलाता है;
सोनिका गुप्ता ने यूं भी काबिज हैं तेरी निगाहें मेरे चेहरे पर/कि आइना देखूं तो भी मैं नहीं, जगदीप सिद्धू ने मैं अस्पताल से घर आया था/मुहजे घर से अस्पताल भेज देना/ भीड़ लोगों की नहीं/ काफिला सोच का होगा मेरे साथ, डॉक्टर नवीन गुप्ता ने मिल कर भी वो ना मिला सा है
शायद दिल में कोई गिला सा है;
डॉक्टर सुनीत मदान ने इवन फॉर स्केंडर्ड टाइम्स यू विल रिफ्लेक्ट/ एस यू वॉच द इयर्स लिवड ऑन द रीरन/ इट विल बी स्टनिंग हाउ ऑल द डॉट्स कनेक्ट; डॉक्टर सपना मल्होत्रा ने थोड़ी मां रहती है मुझमें थोड़े पिता/ गरिमामय संतुलन बना हुआ है, सुगंधा मलिक ने डोंट लेट पीपल अफेक्ट यू/ इवन ईफ यू आर ए डयूंस, डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने निराश पिता अलमारी में अपने कपड़े तलाशते/ बेवजह खामोश खड़े रह जाते पिता/ घर था सन्नाटा था/ बहुत चाहने पर भी मां कहीं नहीं थी, ज़रीना नगमी ने बात करें तो किससे करें/वो तो बहुत शर्मीली हैं/मंज़िल अपनी दूर बहुत है/रास्ते भी पथरीले हैं;
अजरूल हक़ साहिल ने न रावन है कहानी में / न सीता ज़िन्दगानी में/ मगर बनवास फिर भी चल रहा है क्या किया जाए जैसी साहित्यिक रचनाओं का पाठ किया। संजय मल्होत्रा ने बहती बयार के आंचल पर/ अचिन्हा खुमार जो फैल गया/ मैं जान गया कि तू आई, जी एस मावी ने ए जरूरी है रिश्ते नवें बनाए जान; नवतेज कौर ने ओ मेरे मन के निर्दयी मौन/ अपनी निष्ठुर चुप्पी त्यागो/ चिर निद्रा से जागो; विशेष अतिथि अरुण सैनी ने फाउंडेशन के काम को ज़मीनी स्तर पर युवाओं को समाज और देश से जोड़ने का अद्भुत प्रयास बताया। मुख्य अतिथि ने कहा “फाउंडेशन समाज के उत्थान के सभी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दे रही है। कार्यक्रम की अध्यक्ष डॉक्टर विजया सिंह ने सभी प्रतिभागियों की सराहना करते हुए उन्हें समाज की बेहद महत्वपूर्ण कड़ी कहा जिनके ज़रिए संवेदनाएं ज़िंदा रहती हैं और एक खूबसूरत माहोल बनता है।
लाइब्रेरियन सुनील कुमार ने लेखकों के जीवन में लाइब्रेरी की महता बताते हुए सभी मेहमानों का धन्यवाद किया। श्रोताओं में ट्राइसिटी के जाने माने साहित्यकार डॉक्टर कैलाश आहलूवालिया, डॉक्टर विमल कालिया,ध्यान सिंह कहलों, बबिता कपूर, डॉक्टर निर्मल सूद, सीमा गुप्ता, शालू सेहरावत,पिंकी, सुनील कुमार, रेखा मित्तल, लक्ष्मी रूपल, शीनू वालिया, केवल कृष्ण किशनपुरी, बी एस ढिलों, पवन मुसाफिर आदि हाज़िर रहे।