Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 28 October:
बेगम इक़बाल बानो फाउंडेशन के “लिखत पोएटिका” कवि सम्मेलन का सातवां संस्क
बेगम इक़बाल बानो फाउंडेशन के “लिखत पोएटिका” कवि सम्मेलन का सातवां संस्करण सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से उनकी सभागार में 28 अक्टूबर को आयोजित किया गया। बॉलीवुड में चर्चित गीतकार इरशाद कामिल की मां की याद में गठित इस फाउंडेशन के डायरेक्टर विजय कपूर ने बताया कि इस फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य युवाओं को अपनी संस्कृति और कला से जोड़ना है। इस कार्यक्रम में 15 जाने माने युवा और स्थापित रचनाकारों ने भाग लिया।
रोहित गरचा ने ऊंचा लगा है उड़ने चूहा/ इक चील के चंगुल में है, दविंदर कौर ने मैं तेरी दीद दी प्यासी नदी/ तू बन समुंदर आ वी जा, राजेश आत्रेय ने मत खोजो खुशी को इन दुनियावी शोर शराबे में/ बस रहो खुश दिल से, नाकि नकली दिखावे में, अलका कांसरा ने माय वर्ल्ड इस इन स्टिलनेस/आई कैन सी द नॉन थ्रू माय माइंड्स विंडो/आई कंटेंप्लेट द अननोन, डॉक्टर त्रिपत मेहता ने हाँ मैंने देखा है पहाड़ों से शोरगुल करती/ उपद्रव करती उस सरिता को/ अनगिनत पाषाणशिलाओं में विशाल कटाव करते हुए, रेखा वर्मा ने आया करो आया करो/तुम ख्वाब में आया करो/ मेरे हृदय के ताल में बन कमल खिल जाया करो/ बन जाऊँगी मैं चाँदनी/ तुम चाँद बन जाया करो, सुमन ने रचकर मानव कृति खुदा भी मुस्कुराया था/ विकास सीढ़ी के शिखर पर बड़े मान से तुझे बिठाया था, मुग्धा ने जिंदगी बातों का ही सिलसिला तो है/ जो कभी आपने कही या मैंने सुनाई/ या फिर किसी और की बात पर बनाई कोई बात, डॉक्टर राजिंदर कनौजिया ने कैसे बनती है कविता/किसी ने बस में बैठे बैठे पूछा/क्या जैसी बनती है मैगी, विजय कपूर ने मैं कौन हूँ/ तुमसे बहुत बोला/ अब मौन हूँ/ जानो कि तुम्हीं हो/ तो तुम्हीं करोगे/ मुझे भरना होगा/ तो तुम्हीं भरोगे, चमन शर्मा चमन ने वो जुदा उसकी हरेक बात जुदा/ आम लोगों से उसकी जात जुदा, शैली विज खिड़की से भीतर उतरती है सिली इच्छाओं की उधड़न/ जिसे छुपाने के लिए स्वप्न के सीने से लग जाती हैं पेड़ों पर टंगी अधपकी सम्भावनाएं, दलबीर सिंह ने एक अच्छी सी किताब, जिसे मैं पढ़ सकूँ/ एक सच्चा दोस्त जिस पर भरोसा कर सकूँ/ एक सुकून भरी नींद जिसे मैं सो सकूँ/
एक सुन्दर सुबह भोर प्रभात की, जिसे मैं देख सकूँ/ यही तो मेरा सपना है – यही तो मेरा अपना है, खुशनूर ने अज गीत इक लिख देवां दर्दा दे ना ते/दे दे प्याला ज़हर दा ज़ख्मी इस शाम ते, सुमन लता रावत ने माँ तेरे बारे में मैं क्या बताऊँ/ शब्दों को बेशकीमती कैसे बनाऊँ /
गढ़ सके जो एक अनोखी परिभाषा/ नया वो शब्दकोश कहां से लाऊँ, डॉक्टर संगीता शर्मा कुंद्रा ने ये कैसी खुशबू बिखर रही है/ कि साँस में जो उतर रही है जैसी सारगर्भित काव्य रचनाओं का सुंदर पाठ किया। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर राजिंदर कनौजिया ने अपने वक्तव्य में कहा ” कला पक्ष और कथ्य की स्वभाविकता के ताल मेल की रचनाओं ने सामयिक उथल पुथल को खूब निभाया”, कार्यक्रम के गेस्ट ऑफ ऑनर चमन शर्मा चमन ने कहा ” शीत और ताप से सनी पगी रचनाओं द्वारा युवाओं ने संवेदनाओं की अनुभूति को सुंदरता से बयान किया।” लाइब्रेरियन डॉक्टर नीज़ा सिंह खास तौर पे शामिल हुईं।
कार्यक्रम के दौरान अनेक साहित्यकार उपस्थित जिनमें डॉक्टर निर्मल सूद, सत्यवती आचार्य, रेखा मित्तल, डॉक्टर कैलाश आहलूवालिया, सीमा गुप्ता, बबिता कपूर, सुरजीत सुमन, जगदीप सिद्धू, शीनू वालिया, शालू सेहरावत, पिंकी,डॉक्टर दलजीत कौर, डॉक्टर शशि प्रभा, परमजीत परम, अशोक नादिर आदि उपस्थित रहे।