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अभिव्यक्ति ने अपनी पचासवें  बरस की यात्रा में वर्ष 2023 की अंतिम गोष्ठी कवि राजेश बेनीवाल की मेज़बानी में सेन्ट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से लाइब्रेरी के सभागार में आयोजित की

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 3 December:
अभिव्यक्ति ने अपनी पचासवें  बरस की यात्रा में वर्ष 2023 की अंतिम गोष्ठी कवि राजेश बेनीवाल की मेज़बानी में सेन्ट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से लाइब्रेरी के सभागार में आयोजित की-
अभिव्यक्ति ने अपनी पचासवें  बरस की यात्रा में वर्ष 2023 की अंतिम गोष्ठी कवि राजेश बेनीवाल की मेज़बानी में सेन्ट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से लाइब्रेरी के सभागार में आयोजित की। इस आयोजन का संचालन कवियित्री, उद्घोषिका और रंगकर्मी बबिता कपूर ने किया। लाइब्रेरियन डॉक्टर नीजा सिंह विशेष तौर पर हाज़िर रहीं।
पहले सत्र में ट्राइसिटी के जाने माने साहित्यकारों ने अपनी कविताओं के अद्भुत रंग बिखेरे। सतिंदर कौर गिल ने कविता बालमन के ज़रिए कहा “अपने भीतर छिपे बच्चे को शरारत जी भर करने दो/आने दो उसे ज़माने के सामने किसी से उसे न डरने दो”, अश्वनी कुमार भीम ने “कल देखा अजब नजारा था/घर के सामने वाला आम का पेड़ अपने आम स्वयं ही खा रहा था”, परमिंदर सोनी ने “खुश रहने के लिएनहीं ज़रूरी सोने का पालना/प्रेम की गर्माईश मिले, तो और क्या फिर भालना”, रजनी पाठक ने “माँ शब्द का उच्चारण उच्चतम का भाव जगाता/किसी भी उम्र का आदमी बच्चा सा हो जाता”, डॉक्टर अशोक वढेरा ने “मैं तब भी शान से रहता था/मैं अब भी शान से रहता हूं”, सारिका धूपड़ ने “जिस ओर भी मेरी नज़र जाती है/वहीं से एक कहानी चली आती है”, डॉक्टर रोमिका वढेरा ने “साइकिल हूं तुम्हारी आड़ी तिरछी सड़कों पर भागूं/हर रस्ते हर कोने को पहचानूं”, रजनीश ने “ग़म-शनास लोग हैं उदास रहने दीजिए/हम उदास लोग हैं उदास रहने दीजिए” डॉक्टर विमल कालिया ने “चौबारे पर कुछ शब्द छोड़ आया हूँ और “मुस्कुराती तस्वीर” कविताएं पेश की। नवीन गुप्ता जी ने “उस  रूठे हुए को मनाना भी है मुझे/दफ्तर में काम  निपटाना भी है मुझे” और अपनी शायरी से सभी सुनने वालों का दिल जीत लिया।
दास दविंद्र महरम नेo “कल मैंने “मैं” को देखा/मेरे अपनों पर हँसते देखा”, गोष्ठी के मेज़बान आर के सुखन ने “ये कौन था दुश्मन मेरी उड़ान का/परवाज़ पर मिरी ये किसका दाम था”, डॉक्टर निर्मल सूद ने “पहाड़ से उतरती लड़की/सूरज  के सफ़र के साथ हो जाता शुरू सफ़र उसका/बूढ़े माँ- बाबा को खिला-पिला/सिगड़ी जला उतर जाती ढलान पहाड़ी लड़की”, दर्शना सुभाष पाहवा ने “सब को यह बात बताने की ज़रूरत क्या थी/इस तरह मुझ को सताने की ज़रूरत क्या थी”, निम्मी वशिष्ठ ने खूबसूरत टप्पे “रावां तेरियां नियामता दा हर साह नाल शुकर मनावां” सुनाकर खूब वाहवाही लूटी। रेखा मित्तल ने “शाम को थक हार कर जब चल पड़ता हूँ घर की ओर/आसमान की चादर ओढ़े बस स्टॉप के फुटपाथ पर” मार्मिक कविता सुनाई। सुनीत मदान ने “कभी खुद से बाहर निकल कर खुद को देखा है?
आश्चर्य होगा कितनी सीमाओं में खुद को समेटा है!”, वीणा सेठी ने “ना जान कैसे यह घटना घटती जा रही है/मेरी बेटियां मेरी मां बनती जा रही हैं”, शहला जावेद ने “बिखरी रहती हैं अक्सर पन्नों पर दबी रहती हैं मुड़े -तुड़े सफ़ों पर” अमरजीत अमर ने गज़ल “मिलेगा सबको इक घर यह कभी उसने कहा था/सभी तो हैं बराबर यह कभी उसने कहा था”, सुनीता ने “मिटा दो सरहदे कि सफर ज़िंदगी का यूँही चलता रहे/हर किसी को उसके हिस्से का प्यार मिलता रहे”, राजिंदर कौर सराओं ने पंजाबी टप्पे प्रस्तुत किए।
अभिव्यक्ति के संयोजक एवम संचालक विजय कपूर की सारगर्भित कविताएं “खो जाने का अर्थ, बेनकाब होने से पहले, बना रहे जीवन भर, और उसे पता हो” आदि कविताएं उनकी अनुपस्थिति में बबिता कपूर ने पढ़कर सुनाईं। गोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉक्टर विमल कालिया ने कहानी “वह दूसरा आदमी” सुनाकर सब का दिल जीत लिया। और वरिष्ठ साहित्यकार सुभाष शर्मा के व्यंग्य ” छेदी लाल जी चिंता विच्च डूब्बे” सुनकर सारा हॉल तालियों और ठहाकों से गूंज उठा।

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