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हिंदू त्योहार और विज्ञान

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 24 December:
पुस्तक-समीक्षा 
पुस्तक का नाम : “हिन्दू त्योहार और विज्ञान”
विधा : निबन्ध, लेखिका: कृष्णा गोयल
पुस्तक- समीक्षक : सत्यवती आचार्य 
प्रतिष्ठित साहित्यकार श्रीमती कृष्णा गोयल की पुस्तक- “हिंदू त्योहार और विज्ञान” आज की पीढ़ी के युवा वर्ग के लिए तो अत्यावश्यक विषय है ही, उसके साथ ही  प्रत्येक उस जन मानस के लिए है जो या तो इन्हें मानता नहीं या इन्हें जानता नहीं l बड़े ही सहज व सरल  शब्दों में उन्होंने अपने तथ्यों को पाठकों के सामने रखा है तथा वैज्ञानिक पुट के सहारे कृष्णा जी उनके दिलों में उतरने में बखूबी कामयाब रही हैंl
सनातन धर्म के सभी उत्सव और व्रत ब्रह्मांड के खगोलीय घटना, धरती के वातावरण परिवर्तन, मनुष्य के मनोविज्ञान तथा सामाजिक कर्तव्य और ध्यान करने तथा मोक्ष प्राप्ति के उचित समय को ध्यान में रखकर निर्मित व निर्धारित किए गए हैंl
आधुनिक युग की इस भाग दौड़ भरी ज़िंदगी में अब मनुष्य के पास साँस लेने की भी फुर्सत नहीं है l ऐसी अवस्था में मनुष्य के पास समय की कमी के अलावा, धैर्य की भी कमी आ गई हैl ऐसे में सिर्फ औपचारिकता की तरह निभाए जाने वाले पर्वों  के वैज्ञानिक कारण जानकर, सही ढंग से, मन से निभाए जाने पर इनसे न केवल आत्मसन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है वरन् उनकी सार्थकता का भान भी होता है lइस पुस्तक को पढ़कर अनायास ही इस भाव की जागृति होती है l
पुस्तक के सभी अध्याय छोटे-छोटे, स्पष्ट व सरल भाषा में कही जाने के कारण पाठक की रुचि बनी रहती हैlइसमें हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी से जुड़ी हुई अनगिनत आवश्यक सुझाव दिए गए हैं  जिसके कारण वह सहज ही पृष्ठ पलटाता चला जाता है,जो इस पुस्तक को सफल. बनाते हुए इसके चौथे संस्करण की ओर ले जा रही है l इस पुस्तक के तीन संस्करण छप चुके हैंl हमारे भारत के हर प्रांत के भिन्न -भिन्न त्योहार, मान्यताएं, धारणाएँ व परम्पराएँ  हैं lइसके बावजूद, इन सबको सनातन धर्म ने एक सूत्र में बाँध रखा है l
वे पर्व जिनका उल्लेख हमारे वैदिक धर्मग्रंथों, धर्मसूत्रों तथा आचार संहिता में है, उनको हज़ारों सालों से मनाए व माने जाने का मुख्य कारण यह है कि उनका आधार विज्ञान है l विज्ञान हमारे सभी त्योहारों को सार्थक बनाती हैं l
लेखिका ने अपनी पुस्तक को 14 अध्यायों में बाँटा है l
इस पुस्तक के आधार हैं :’प्रकृति और उसका हमारे जीवन पर प्रभाव’, ‘त्योहार, हमारी मान्यताएं,प्रथाएं व संस्कार’ तथा उन सब का वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य’l पुस्तक में से कुछ उपयोगी सुझाव और उदाहरण जो हमारा अनायास ही ध्यान खींच लेते हैं  उनमें से कुछ का संक्षेप में उद्धरण प्रस्तुत हैl चिर काल से स्त्रियां कभी अपने श्रृंगार के लिए , तो कभी रस्म -ओ – रिवाज़ निभाने के लिए, धार्मिक मान्यताओं के कारण,सर से लेकर पाँव तक  तरह – तरह के आभूषण, कुमकुम, सिन्दूर आदि का उपयोग करती आ रही हैं l इस पुस्तक में जब उनका उपयोग करने के वैज्ञानिक कारणों का पता चलता है तो पाठक का मन सहसा उल्लास से भर जाता है l
इसका विस्तृत वर्णन हमें अध्याय -1 में मिलता है l
अध्याय #2- आभामण्डल ,#3- पूर्णिमा का विज्ञान ,#4- अमावस्या और नकारात्मक ऊर्जा ,#12- नक्षत्रों का प्रभाव हैं, जिनमें लेखिका ने प्रकृति के खगोलीय विज्ञान तथा  हमारे जीवन पर उसके प्रभाव को बहुत ही सुंदर, सरल भाषा में चित्रित किया है l
त्योहारों के बारे में विस्तृत जानकारी हमें अध्याय -#5- मकर संक्रांति, #6- बसंत पंचमी, #7- शिवरात्रि, #8-होली और #9- चैत्र नवरात्रि  में मिलती हैl इनको पढ़ कर हम जो त्योहार मनाते हैं उनकी सार्थकता को जान कर, मन अनायास ही हर्षित हो जाता हैl
अध्याय # 1- महिलाओं के कुछ श्रृंगार,#10- श्राद्ध, #11- करवा चौथ, # 13- 33 करोड़ देवी -देवता, #14 “हिन्दू संस्कारों का विज्ञान” हैं जिनमें मुख्यतः भारत की प्रथाएँ, संस्कार और मान्यताएं और उनमें विज्ञान का समन्वय इनको दर्शाया गया हैl इस पुस्तक में कुछ ऐसे  विषयों को भी छुआ गया है जो स्वाभाविक रूप से पाठक का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं l
अध्याय- 2 में, अपने चेहरे पर तेज कैसे लाएँ,  अपने चारों ओर सुरक्षा तंत्र का आवरण कैसे बनाएँ जिससे बाह्य संक्रमण से हमारी रक्षा हो , अपने Aura या आभामंडल को कैसे शुद्ध करें, कैसे नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर सकारात्मक ऊर्जा को सशक्त किया जाए आदि का वर्णन किया गया हैl
अध्याय -3 में, बड़े दिलचस्प ढंग से बताया गया है कि चाँद और पूर्णिमा का हमारे मन और मस्तिष्क से क्या नाता हैl नींद का कम आना, भावनाओं का उत्तेजित हो जाना जैसी मानसिक उद्वेगों का संबंध जैसे विषय को इस अध्याय में लिया गया है l
“अगर हम किसी चीज़ को शिद्दत से चाहते हैं तो ब्रह्मांड का हर ज़र्रा उसे दिलाने की कोशिश में जुट जाता है और कामयाब होता है l” यह एक प्रचलित उद्धरण है  l इसकी सत्यता  को वैज्ञानिक रूप से इस अध्याय में  परखा गया है l
अगला दिलचस्प विषय  है – मंत्र l मंत्र क्या है, उसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, उसका उपयोग अपनी उन्नति के लिए कैसे करना चाहिए आदि  को बड़े ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया गया हैl जो ऊर्जा हमारे अंदर है, वही ऊर्जा ब्रह्मांड में भी हैl जो ब्रह्मांड में चुम्बकीय शक्ति (इलेक्ट्रोमैग्नेट पावर) है,जिससे सभी सितारे, पृथ्वी, चाँद, तारे गतिशीलu हैं,वही शक्ति हमारे अंदर है  जिससे हम गतिशील हैं  l जब हम सही ढंग से साधना करते हैं तो हमारे ब्रह्मरंध्र  की चुंबकीय शक्ति ब्रह्मांड में से उस ऊर्जा शक्ति को अपनी ओर आकर्षित करती है जिसकी हम साधना करते हैं l
जब किसी ऊर्जा समूह की कंपन की ध्वनि जैसा मंत्र बोल जाता है तो संबंधित अंग को शक्ति मिलती है जैसे सुलगती हुई आग को हवा देने से आग जल उठती है ठीक उसी तरह हमारे अंदर की ऊर्जा जब कमज़ोर होने लगती है तो उस ऊर्जा से संबंधित मंत्र बोलने से वह ऊर्जा उद्दीप्त  हो उठती है और हमारा अंग स्वस्थ होने लगता है l दूसरा सटीक उदाहरण यह है कि जब छोटे शिशु को मल-मूत्र त्याग  करवाते हैं तो हम मुँह से शू…शी… की ध्वनि निकालते हैं तब उस ध्वनि से शिशु  के मूलाधार की कंपन तेज़ हो जाती है और शिशु आराम से मल-मूत्र विसर्जित  कर देता है क्योंकि शू,शी  मूलाधार के पंखुड़ियों के बीज अक्षर कहलाते हैं l
इसी तरह सहस्रार चक्र का बीज अक्षर है- ॐ lजिसका इस्तेमाल करके हम शिशु के सहस्त्रार चक्र को शांत करते हैं जिससे उसे नींद आ जाती है l पिछले दिनों इस बात पर काफी बड़ा विवाद खड़ा किया गया था कि शिवरात्रि के समय शिवलिंग पर जल चढ़ा कर  अत्यधिक मात्रा में दूध को बर्बाद किया जाता है जो गरीब बच्चों को दिया जाना चाहिए l
सदियों से चली आ रही इस प्रथा का वैज्ञानिक कारण जाने बिना तरह-तरह की टिप्पणियाँ की जा रही थीं l लेखिका ने इसको बड़े ही खूबसूरत ढंग से वैज्ञानिक तथ्यों  का शोध कर अध्याय #7 में वर्णित  किया है l जल में दूध मिलाकर शिवलिंग (जो पारद धातु का बना होता है),पर चढ़ाने से जो प्रतिक्रिया होती है,वह रेडिएशन से बचाव करती है l अखंड बिल्व पत्र पर चंदन लगाकर शिवलिंग को ढकना भी बहुत गहन संदेश देता है lमौसम के बदलते हुए समय में वातावरण में किरण पात या रेडिएशन बहुत होता है, जो मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता है l उससे बचने के लिए यह सांकेतिक संदेश है कि बिल्व पत्र पर चंदन लगाकर सिर ढकने से जो रासायनिक क्रिया होती है उसे किरण पात का दुष्प्रभाव तो दूर रहता ही है, मस्तिष्क को शक्ति भी मिलती है l
कृष्णा गोयल जी आगे कहती हैं कि ज्ञानी लोग इन चीज़ों का लाभ उठाते हैं, अज्ञानी लोग रूढ़िवादिता कहकर मज़ाक  उड़ाते हैं l जिन ऋषि रूपी महान वैज्ञानिकों ने अपनी पूरी उम्र इन तथ्यों को ढूंढने में लगा दी और उन्होंने आने वाली पीढ़ी को सजग रहने के लिए सांकेतिक संदेश दिए ऐसे पूर्वजों की दूरदर्शिता को नमन है l इस किरण पात को हमारे ऋषि मुनियों ने जाना, समझा और हमारे लिए कुछ नियम बना दिए  जिससे हम अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकें l इस अध्याय में खगोलीय तथ्य का विस्तार से चित्रण किया गया हैl
यह पुस्तक, “त्योहार और विज्ञान एक सिक्के के दो पहलू हैं”, इस तथ्य को अवगत कराने के लिए पौराणिक ग्रंथों के अमूल्य ख़ज़ाने  तथा विज्ञान के अथाह समुद्र में गोता लगाकर निकाला गया एक बहुमूल्य मोती है l इस पुस्तक में कहीं-कहीं पंजाबी शब्दों का हिंदीकरण कर दिया गया है तथा कहीं-कहीं शब्दों की वर्तनी में अशुद्धियाँ हैं जिनसे बचा जा सकता था l
कुल मिलाकर,  यह  कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह पुस्तक आधुनिक समाज के लिए अपने धर्म को समझने में सहायक सिद्ध हो सकती है l कृष्णा गोयल  जी की यह शोध-युक्त  पुस्तक  चिंतन -मनन कर,अपने पर्व-त्योहारों,संस्कारों, मान्यताओं तथा प्रथाओं को भली- भाँति जान कर व समझ कर, अपने जीवन में उतार कर, पालन करने के लिए प्रेरित करती है l
सत्यवती आचार्य, चंडीगढ़-7986342265

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