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बॉलीवुड में चर्चित गीतकार इरशाद कामिल की मां की याद किया गया कवि सम्मेलन

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 24 Feburary:
बेगम इक़बाल बानो फाउंडेशन के “लिखत पोएटिका” कवि सम्मेलन का ग्यारहवां संस्करण, सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से उनकी सभागार में 24 फरवरी को आयोजित किया गया – फाउंडेशन डायरेक्टर विजय कपूर
बॉलीवुड में चर्चित गीतकार इरशाद कामिल की मां की याद किया गया कवि सम्मेलन
बेगम इक़बाल बानो फाउंडेशन के “लिखत पोएटिका” कवि सम्मेलन का ग्यारहवां संस्करण सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से उनकी सभागार में 24 फरवरी को आयोजित किया गया। बॉलीवुड में चर्चित गीतकार इरशाद कामिल की मां की याद में गठित इस फाउंडेशन के डायरेक्टर विजय कपूर ने बताया कि इस फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य युवाओं को अपनी संस्कृति और कला से जोड़ना है।टी एस सेन्ट्रल स्टेट लाइब्रेरी की ओर से डॉक्टर निज़ा सिंह एवम उनकी टीम विशेष रूप से उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम में 13 जाने माने युवा और स्थापित रचनाकारों ने भाग लिया। लिखत पोएटिका 11 का संचालन कवियित्री, उद्घोषिका और रंगकर्मी बबिता कपूर ने किया। लिखत पोएटिका 11 के प्रतिभागियों ने अपनी रचनाएं पढ़ कर सुनाई। हिंदी, अंग्रेज़ी, पंजाबी और उर्दू भाषाओं में पढ़ी रचनाओं ने कार्यक्रम के रंग रूप को बाखूबी निखारा।
नीरू मित्तल ने “किन्हीं पुरखों की वारिस नहीं होतीं स्त्रियां/वो तो सिर्फ और सिर्फ पराई होती हैं यहाँ भी और वहाँ भी”, कपिल शर्मा ने गज़लें पढ़ीं, उनमें से एक गज़ल कुछ इस तरह से थी “उन रास्तों पे दोस्त मयस्सर नहीं होते/जिन रास्तों पे मील के पत्थर नहीं होते”, रजनी पाठक ने कविता “हे वसंत ऋतुराज वसंत पधारो हमारे प्रयागण में/कलियों की ख़ुशबू फूलों के रंग भौंरों का स्वर गूंजे हमारे आँगन मे”, विजय कपूर ने कविता उतरता है खुमार “तुम्हीं बताओ/तुम्हें यह कैसे याद रहता है/कि तुम्हें भूलने की बीमारी है/थोड़ा आसान करके पूछूं/क्या बढ़ जाने पे ही आती है समझ/कि इतनी सारी है”, मंजू खोसला ने मातृ दिवस पर मां को श्रद्धा सुमन स्वरूप कविता “तू बड़ा कब बनेगा/मां कहती थी कब तक करेगा यह नादानियां/तेरी शैतानियाँ से होती है हमें बड़ी परेशानियां तू कब जिम्मेवारियां समझेगा/तू कब संभलेगा तू बड़ा कब बनेगा”, डॉक्टर सुनीत मदान ने “अपने क्षितिज को पहचान/चेहरे पे ले मुस्कान/भव्य भविष्य कर निर्माण/सहर्ष हासिल कर अभीष्ट मुकाम कर्मयोगी/तू आगे बढ़/विजयी भव: विजयी भव:”, अनमोल ढिल्लो ने “इक तरफ़ा आशिक़ों के किसी और के साथ, हाल नहीं मिलते/और वफ़ा कमाने वाले भी आज कल, बाकमाल नहीं मिलते/मिलते तो हैं हर रोज़ 100 जन प्यार से जनाब/जितनी ख़ुशी से वो आती है, वैसे बेमिसाल नहीं मिलते”, वीणा सेठी ने “चलो फिर से करते हैं प्रयत्न पहचानने का एक दूजे को/अधूरी ख्वाहिशों को रख के ताक पर” सुखविंदर मान ने कविता “हर रोज  रंग बदले मिज़ाज तेरा/कदे रुसदा कदे माणे शबाब मेरा” पेश की। तुषारांशु शर्मा ने “बूंद”, पटियाला से आईं मीनाक्षी वर्मा ने ” कॉलेज की यादें” और “निर्भया” पर कविताएं सुनाई।
सभी प्रतिभागियों ने एक से बढ़कर एक रचना प्रस्तुत कर कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार जगदीप सिद्धू ने अपने वक्तव्य में कहा” नवयुवक अच्छा लिख रहें हैं लेकिन अगर सीखने और पढ़ने पर सलीके से गौर करें तो कला में और निखार आने की संभावना है। लिखने में बहर, क़ाफिया, रदीफ के साथ भाव में और निखार आ सकता है।” जगदीप सिद्धू ने कविता “धीये तेरे आउण नाल मेरा वी इक जन्म होएआ/तेरे आउण करके ही जाणिया हंजुयां दे ज़ोर ते अग दी भयावनकता बारे” और कविता “खुश सी मां पुत दा घर देख के/थल्ले सोहना पत्थर लगिया देख के” सुनाई। कार्यक्रम की विशेष अतिथि जानी मानी साहित्यकार, पत्रकार और कवि, प्रोफेसर डाॅक्टर अर्चना सिंह ने सभी कवियों की कविताओं पर सार्थक टिप्पणियां कीं और कहा कि इस तरह के कार्यक्रम नवयुवकों को लिखने के लिए प्रोत्साहित तो करते ही हैं इसके साथ ही हमारे साहित्य को संजो कर रखने में मददगार हैं” प्रो. डॉ. अर्चना सिंह ने अपनी हिंदी कविता “कविता दस्तक देती है” व अन्य कविताएं सुनाई। उनकी एक और कविता कुछ इस प्रकार थी “आज कविता ने दस्तक दी है/पट खोलूँ मैं तब तक दी है/आज कविता ने दस्तक दी है/दिन उम्र के साथ सिकुड़ते/सुबह शाम की दौड़ बने हैं”।
कार्यक्रम के दौरान अनेक साहित्यकार उपस्थित जिनमें डी पी कपूर, नीतू कलसी, किरणवीर संधू, डॉक्टर सत्यभामा, रमनदीप कौर, सपना मल्होत्रा, रजनीत कौर, अजनबी, जयदीप चौधरी, गौतम शर्मा, डिंपी चौधरी, अजय सिंगला, सविता राणा, परमिंदर सोनी, दलजीत कौर, अजय सिंगला, अनुप्रिया शर्मा, मेहताश कौर, रेखा मित्तल, साक्षी, रेखा वर्मा, शीनू वालिया, अवतार सिंह पतंग पिंकी, संजय मल्होत्रा, अजय राणा, खुशनूर कौर, राजिंदर सराओं, बबिता, डॉक्टर राजकुमार मलिक, प्रसून प्रसाद सागर आदि उपस्थित रहे।

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