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पीढ़ियों के प्रभावित करने वाले साहित्यकार और रंगकर्मी डॉक्टर वीरेंद्र मेंहदीरत्ता की पहली पुण्यतिथि पर अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा श्रद्धांजलि और गोष्ठी का आयोजन किया गया

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 2 June:
पीढ़ियों के प्रभावित करने वाले साहित्यकार और रंगकर्मी डॉक्टर वीरेंद्र मेंहदीरत्ता की पहली पुण्यतिथि पर अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था द्वारा श्रद्धांजलि और गोष्ठी का आयोजन किया 
2 जून को अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था के संस्थापक स्वर्गीय डॉक्टर मेंहदीरत्ता की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि और गोष्ठी का आयोजन सेक्टर 11 चंडीगढ़ में उनके निवास स्थान पर हुआ, जिसमें ट्राइसिटी के अनेक साहित्यकारों और रंगकर्मियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार, रंगकर्मी और अभिव्यक्ति के संयोजक विजय कपूर ने किया।
डॉक्टर अतुलवीर अरोड़ा ने श्रद्धांजलि पेश करते हुए कहा “पत्थरों के शहर में साहित्य और रंगकर्म से प्राण फूकने वाले दरवेश थे डॉक्टर मेंहदीरत्ता।” विजय कपूर ने ने उन पर बात करते हुए कहा “डॉक्टर मेंहदीरत्ता ने साहियकारों और रंगकर्मियों की अनेक पीढ़ियों को प्रभावित करते हुए नई चेतना का संचार किया। अभिव्यक्ति जैसी साहित्यिक संस्था और अभिनेत जैसे थिएटर ग्रुप की नींव रखी। जिन्हें चंडीगढ़ के ऐसे पहले संस्थान होने का गौरव प्राप्त है।”
डॉक्टर विमल कालिया ने भावभीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि उनकी कहानियों और कविताओं के विकास के पीछे डॉक्टर मेंहदीरत्ता और अभिव्यक्ति का ही सबसे बड़ा योगदान है।” प्रो. अलका कांसरा ने डॉक्टर मेंहदीरत्ता को ऐसा गुरु कहा जो मन मस्तिष्क में छा कर साहित्य सृजन का बीजारोपण कर देता था। इस मौके पर श्रीमती मेंहदीरत्ता, अपराजिता और राकेश शर्मा ने भी उनकी मीठी बातों को याद किया।
दूसरे चरण में गोष्ठी का आयोजन हुआ। रजनी पाठक ने सफ़ेद घाटियाँ मानो काग़ज़ के पन्ने लहराते से फूल पत्ते मानो मचलते शब्द दुआ में उठे बादल मानो कर रहे कोई सजदा या फिर मंतर जाप,  सीमा गुप्ता ने  लापता कुछ पल कुछ बातें, कुछ रिश्तें किसी एक दिन फिर उसी समय पर आ खड़े होते हैं अपने सही  पते पर, राजिंदर सराओ ने जन्म-मरण दे चकरा विच तूं बंदा रोल के रख दिता पहला बन के मोह दिया तंदा विच, फिर बंदा ही बंदे तों खो लिया, मेरी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती कुछ शब्दों की मेरी श्रद्धांजलि आजीवन चलेगी, डॉक्टर नवीन गुप्ता ने
तेरे यहां पर नुक्ता है मेरे यहां पर बिंदी है जितनी शीरीं उर्दू है उतनी मीठी हिंदी है।
विजय कपूर ने “सघन आत्मीय संवेदना ही साधती है सही अनुपात, कि महसूस हो शाश्वत धरातल, जो न रहे सीमित केवल बिंबों और प्रतीकों तक”, रेखा मित्तल ने “न चाहते भी मन होता है उदास शाम ढलते ही शहर की खामोशी सूने फ्लैट में अपने ही रचे एकांत दिन‌ भर की व्यस्तता का दबाव”, दास दविंदर महरम “गोल रोटी का चक्कर सारा, चक्करों  में डाले सबको रोटी, डॉक्टर रोमिला वढेरा ने चलो आज मैं छुट्टी पर चली कल किसने देखा कर लो मौज मस्ती आज ही सारी”, डॉक्टर विमल कालिया ने “मुझे, सोते सोते छाती पर अधखुला नहीं  छोड़ा करते, मुझे तुम्हारी धड़कने सोने नहीं देतीं, सभी को लगता है कि है तो एक किताब भर ही।”
कुलतारण छतवाल ने “क्यों दौड़ रहे हो? तुम्हें ज्यादा क्यों चाहिए? ज्यादा का क्या करोगे?” वीणा सेठी ने “यह बात और है की आंधी हमारे बस में नहीं चिराग जलाना तो हमारे इख्तियार में है”, डाक्टर सारिका धूपड ने मुझे भी कहाँ भाता है? ऊर्जा नष्ट करना, बस बदलने में! पर काम चलता नहीं, सम रहने में”, मोनिका कटारिया ने “रिश्तों को देकर धक्का बाहर धकेल दिया रिश्ते में भी अहंकार था बाहर निकल गया”, डॉक्टर राजिंदर कनौजिया ने “खिड़की से दिख रहे गुलमोहर के फूल, गुल हो जाने की शर्त पर जैसे मोहर लगा रहे है, अब क्या कहूँ कहाँ गुम हो जायें इतने भीड़ में अकेले”, मीता खन्ना ने “तुम साथ हो”, अमर जीत अमर ने “और कुछ आरज़ू ना थी अपनी इक नज़र तुमको देखना भर था, यूँ तो इक सायबान सर पर था फिर भी आँखों में धूप का डर था”
डॉक्टर अतुलविर अरोरा ने “आंख में भी आंख होगी, देखना तो आंख में … आ रहा किसका इशारा देखना तो आंख में …’, डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने “कई दिशाओं में एक के बाद एक खुलते जाते हैं गंतव्य, एक बीज में अनेक बीजों का भवितव्य बारिश की एक बूँद में असंख्य असीम सागर संभाव्य”, डॉक्टर अशोक वढेरा ने चल इक खेल नया खेले रोज रोज गच्चा देते इस वक्त की आंखों पर बांध पट्टी चल आंख मिचौली खेलें”,
बबिता कपूर ने “इतना विचारो मत छोड़ दो उतार दो उसे जो चढ़ता है तुम्हारे कांधों के सहारे और जा बैठता है तुम्हारे सर पर”, डॉक्टर निर्मल सूद ने यह रंग, यह ख़ुशी सदाबहार हो जाए, साँझ ढले, सुबह हो या रात ख़ुशियों के रंगों से भीगा लम्हा-लम्हा यादगार हो जाए”, अन्नू रानी शर्मा ने  “अपनों पर इल्ज़ाम लगाना ठीक नहीं तकड़ी पर उनको तुलवाना ठीक नहीं” जैसी सुंदर और सारगर्भित कविताओं का पाठ किया।
गोष्ठी के तीसरे सत्र में  डॉक्टर विमल कालिया ने संजीदा कहानी “नहीं बनना, आप जैसा” और सुभाष शर्मा ने अपनी दिलचस्प पंजाबी कहानी “चोर ते शराबी” का पाठ किया। इनके अतिरिक्त डॉक्टर सत्यभामा, नृप्योदय रत्न, अपराजिता, राकेश शर्मा ने भी कार्यक्रम में भाग लिया।

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