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अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था की अक्टूबर माह की गोष्ठी पंजाब पुलिस ऑफिसर्स इंस्टीट्यूट सेक्टर 32 में आयोजित की गई

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 5 October:
अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था की अक्टूबर माह की गोष्ठी पंजाब पुलिस ऑफिसर्स इंस्टीट्यूट सेक्टर 32 में आयोजित की गई
अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था की अक्टूबर माह की गोष्ठी पंजाब पुलिस ऑफिसर्स इंस्टीट्यूट सेक्टर 32 में आयोजित की गई। कार्यक्रम का संचालन अभिव्यक्ति के संयोजक साहित्यकार और रंगकर्मी विजय कपूर ने किया, जिसकी मेज़बानी कवियत्री राजेंद्र कौर सराओ ने की।
सबसे पहले हाल ही में स्वर्ग सिधारी अभिव्यक्ति की सदस्या कहानीकार और कवि वीणा सेठी जी को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई। विजय कपूर ने श्रद्धांजलि देते हुए कहा “संवेदनाओं के द्वार को खटखटाती कहानियां और कविताएं गढ़ती थीं, स्वर्गीय वीणा सेठी जी।”
उसके बाद संवेदनाओं की बाढ़ में सजी -पगी सामाजिक व्यवस्थाओं की परतों को खंगालती रचनाओं ने सुनने वालों का  मन मोह लिया, जिसमे अनेक कविताएं एवं कहानियां शामिल रहीं।
इस कार्यक्रम में 30 जाने माने साहित्यकारों ने भाग लिया।
अपनी कविताओं का पाठ करते हुए
डॉक्टर नवीन गुप्ता ने
“मज़दूर का बच्चा उसे सरे-बाज़ार बेइज़्ज़त नहीं कर   सकता
खिलौने  देख तो सकता  है लेने की हसरत  नहीं कर  सकता।”
राजिंदर कौर साराओ ने “तन दी अग अते मन दी अग साड़दी नहीं सुलगांदी है।”
विजय कपूर ने
“तुम डर के डूबोगे
या डूब कर डरोगे,
यह तुम
निर्धारित नहीं करोगे।”
डॉक्टर निर्मल सूद ने
“रेल के सफ़र सी ज़िंदगी
चलती रेल पीछे छूटता,
क़स्बा, गाँव , शहर, और घर
भागते नज़र आते पेड़, इंसान।”
अलका कंसरा ने “पतझड़ में आए तुम
बन कर रुत सुहानी।”
रेखा वर्मा ने “तुम मेरा सीमांकन मत करो
मैं सीमा से परे हूँ।”
डॉक्टर रोमिका वढेरा ने ” सुंदरता की परिकाष्ठा
पंखुड़ियां ये गुलाब की।”
मिकी पासी ने
“कविता का रूप लिए
कुछ प्रश्न मेरे सामने आये।”
बी बी शर्मा ने
“चमक चेहरे पे लानी है तो
जर्रे जर्रे से रावता रखें।”
अमरजीत अमर ने “खुद से यूँ बतियाया कर
सबसे घुल मिल जाया कर ।”
आर के सुखन ने
“अपने सर मेरी बलाएं कौन लेता
मॉं ना होती तो दुआएं कौन देता ।”
डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने “हर आदमी टूटने से डरता है।”
डॉक्टर सुनीत मदान ने “ऐ नील गगन नीलम मेरे
तेरी छत्र में मुझे जीने दे ।”
मोनिका कटारिया ने “वो क्या भीगेंगें सावन में
आँगन में जो छज्जे लगवाते  होंगे।”
करीना मदान ने
“फुहार भीगी भीगी बूँदों की
तन को मन को भीगोती है I”
सीमा गुप्ता ने
“मायके आना और अनदेखा,अनसुना रह जाना
और अकेला कर जाता है लड़कियों को।”
रेखा मित्तल ने
“लिखा था एक खत मैंने
पर वह पोस्ट न हुआ।” अश्वनी कुमार भीम ने ” गर्व है मुझे भगत सिंह की शहादत पर।”
सपना मल्होत्रा ने “कसर बस इतनी ही बची है कि अब तो स्वयं प्रभु ही प्रकट होंगे।”
डॉक्टर अशोक वढेरा ने
“तू मुझे कुछ
मुझ सा लगता है।” अनुरानी शर्मा ने “आ मेरे मीत इरादा कर, खुद से जीत का वादा कर।”
शहला जावेद ने
“दिन भर तो सहन और आँगन मैं डोलती है धूप
जो शाम हो तो दामन झटक के चल देती है धूप।” कैप्टन हरमन रेखी ने ” खुशबू है मुझमें
आलस्य का त्याग है।
प्रकृति से जन्मी
जीवन देती आग है।” और नृप उदय सिंह रत्न ने  उदय सिंह ने “है तो एक दिल मौसम का भी,
हमारी तरहां टूटता है वह भी,
पर उस दिल के टूटने का दर्द बारिश के रूप में हमारे दिल को जोड़ जाता है। ”  जैसी सारगर्भित कविताओं का सुंदर पाठ किया।
गोष्ठी के दूसरे सत्र में विजय कपूर ने अप्रवासियों की अति संवेदनशील व्यथा-कथा को “डांभोला” नाम की कहानी के जरिए सुनाया।सुभाष शर्मा ने दिलचस्प कहानी..”धंधे दी गल” का पाठ किया।
सारिका धूपड़ ने   पीड़ा से पनपी कहानी “पेन अनवेल्ड” पढ़ी।

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