Chandigarh (sursaanjh.co bureau), 7 Deceber:
सतिंदर कौर गिल के नवीन काव्य संग्रह “जीवन-मंथन- एक नई दिशा” का विमोचन प्रेस क्लब सेक्टर 27 चंडीगढ़ में 7 दिसंबर को हुआ। इस कार्यक्रम का संयोजक और संचालन साहित्यकार और रंगकर्मी विजय कपूर ने किया। संग्रह पर टिप्पणी करते हुए विजय कपूर ने कहा “इनका चिंतन और मानव दृष्टि इनकी कविताओं में मुक्त चिरंतन नारी की मजबूत झलक प्रस्तुत करती है। इनकी कविताओं का भाव-बोध अंतर्वस्तु और शिल्प सोचने पर मजबूर करता है।इनकी कविताओं की अर्थवता सुरक्षित रहे इसलिए इनको निरंतर लिखना होगा। मुझे विश्वास है कि भविष्य में यह अपना बहुत मजबूत पथ गढ़ेगी और आधुनिक चेतना का एक स्तंभ बनेंगी।”
पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए डॉक्टर दलजीत कौर ने कहा “लेखिका सतिंदर कौर का काव्य -संग्रह जीवन मंथन -एक नई दिशा शीर्षक को सार्थक करता है। जितना मंथन कवि ने अब तक अपने जीवन में किया है वह उनकी कविताओं में झलकता है।”
काव्य-संग्रह पर अपनी समालोचना पढ़ते हुए डॉक्टर सारिका धूपड़ ने कहा “कविता संग्रह “जीवन मंथन-एक नयी दिशा” एक सुगन्धित गुलदस्ते की भाँती है जहां हर एक कविता, एक नाज़ुक पंखुड़ी सी है जो पाठकों को अपनी सरल, सहज, सशक्त व् संवेदनशील भावों के साथ लुभाने के लिए सजी है। निश्चित ही कवयित्री का काव्य संग्रह उनकी मन: स्थिति, सामाजिक सरोकारों, संवेदनाओं व जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूता दिखा है। इनकी प्रगतिशील विचारधारा व अपनों के प्रति स्नेह भाव अत्यंत प्रभावित करते हैंl”
कवि सतिंदर कौर गिल का कहना था कि वह अपनी लहरों के बहाव में बहती हैं और मन कहा लिखती हैं। इसे अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम मानती है। कार्यक्रम में गोष्ठी के दौरान जाने माने साहित्यकारों ने भाग लिया। गोष्टी के पहले चरण में कविताओं का बोलबाला रहा। आर के सुखन ने “ग़मों से चूर होता जा रहा हूं/ बड़ा बे-नूर होता जा रहा हूं।”
कुलतारण छतवाल ने “जिंदगी है मुंतज़िर तुम मुस्कुराओ तो सही, राह मिल ही जाएगी तुम साथ आओ तो सही” विजय कपूर ने “भीड़ में भी इतना दम नहीं कि तुम्हें दबोच सके/ बस, याद रखो कि भागते हुए तुम्हें केवल चिल्लाना है/ पकड़ो पकड़ो।” कृष्ण गोयल ने मैं छोटे मुंह बड़ी बात बताने वाली हूं मीडिया का बदलता रूप दिखाने वाली हूं।” अश्वनी भीम ने “झूठ का पुलिन्दा है इंसान तो कवि भी झूठा हो सकता है” शहला जावेद ने “लम्हे तेरी याद के जो ख़्यालों में भीड़ लगाते थे कभी एक दिन वही मेरी ज़ात को तन्हा कर गए।”
डॉक्टर विमल कालिया ने “कविता.. सोचते बहुत हो। जब एक नन्ही बच्ची पैर डालती है पोखर में। तो उसमें आवाज़ और शब्द भरने लगते हो सोचते सोचते बना लेते हो” सारिका धूपड़ ने “मौसम बदल कर सर्द हुआ है दर्द भी थक कर जर्द हुआ है” परमिंदर सोनी ने “नर्म, मखमली सूत सी, हौली सी छुअन है हर रोम को मदमस्त करती सौम्य सी किरण है।” खुशनूर ने “तू मेरे लई इक कविता लिखी, जद मैं इस दुनिया तो जावा” जरीना नग़्मी ने” चल सखी कहीं दूर चलें, जहां लालच लोभ न माया हो।”
सीमा गुप्ता ने “कानों से सुनाई देना बंद ढीली हो गई पकड़ चीजों पर और रिश्तों पर भी शिथिल होने लगी देह” अमरजीत अमर ने “हर एक साँस में धुआँ लेकर जान को जाएँ अब कहाँ लेकर।” डॉक्टर अर्चना आर सिंह ने “पढो अखबार तो हादसों का शहर सामने आए, रोज़ ढहता हुआ भयानक सा कहर सामने आए।” डॉक्टर सत्यभामा ने कविता “भाई-बहन”, डॉक्टर निर्मल सूद ने “जब शून्य का विस्तार देखा अनंत, असीम, अथाह पारावार देखा” मोनिका कटारिया ने “कई जन्मों से तलाश रही हूँ अपने घर का पता, एक जगह बसती हूँ दूसरा बसाती हूँ।”
करीना मदान ने “पिता होता है एक संबल, छत की तरह” मिकी पासी ने पाँच साल जो आए ना नजर चुनाव में सुरखियों में आएंगे ! पियेंगे दलित के हाथ का पानी, पिछडो को माला वो पहनाएंगे” रेखा मित्तल ने “दीमक शायद पढ़ना जानती थी तभी चाट गई अलमारी में रखी किताबों को” डॉक्टर सुनीत मदान ने “सियाही नहीं अब निकलती कलम से जज़्बातों ने उसे कुछ ऐसा दबोचा है कभी धक्के से उसे चलाया तो नीली बोतल से पन्नों पे रंग लाल निकला है।”
डॉक्टर नवीन गुप्ता ने “तुझसे बिछड़ कर कुछ रोज़ तो तेरा इंतजार बहुत रहा फ़िर भूख का मसअला तुझे भूलाने में मददगार बहुत रहा” जैसी सारगर्भित काव्य रचनाओं का पाठ किया। गोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉक्टर विमल कालिया ने कहानी “अधूरी सी पूरी दोस्ती” का सुंदर पाठ किया” डॉक्टर पंकज मालवीय ने कहानी मुन्ना पढ़ी। इस कहानी में छोटे बच्चे के देर से बोलने पर मां की मन:स्थिति का मार्मिक विश्लेषण है।” अश्वनी कुमार भीम ने व्यंग्य “देसी और विदेशी” से खूब गुदगुदाया।