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अभिव्यक्ति साहित्य संस्था चंडीगढ़ ने सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से अपनी अप्रैल माह की गोष्ठी का आयोजन किया – विजय कपूर

Chandigarh (sursaanjh. com bureau), 5 April:
अभिव्यक्ति साहित्य संस्था चंडीगढ़ ने सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से अपनी अप्रैल माह की गोष्ठी का आयोजन लाइब्रेरी के सभागार में 5 अप्रैल को किया।इस गोष्ठी की संयोजन और संचालन साहित्यकार और रंगकर्मी विजय कपूर ने किया। गोष्ठी की मेज़बानी डॉक्टर सपना मल्होत्रा ने की। इस गोष्ठी में ट्राई सिटी के जाने माने साहित्यकारों ने भाग लिया। गोष्ठी के पहले सत्र में डॉक्टर निर्मल सूद ने “स्त्री जब हँसती है, कुदरत हँसती है, चमकते गोल चाँद मे, सूरज की सुनहरी किरणों में।”
डॉक्टर अशोक वढेरा ने “सुनो इक संदेसा आया है पोस्टकार्ड पर लिख किसी ने प्यार जताया है।” जरीना नगमी ने “रात के बाद अब आने वाली है सुबह,
जिंदगी केवरंग अब बदलने होंगे” राजिंदर सराओ ने “मेरा सुहा सालू नी, सजना दी निशानी नी। मेरी पायल पैरा दी , सजना नू बुलांदी नी।” नीरू मित्तल ने “एक स्त्री मिलती है अनेकों स्त्रियों सेऔर बिन कहे, बिन सुने ही जान लेती है हाल दूसरी के दिल का।” अश्वनी भीम ने “माताओ सुनो-न दो अपनी बच्चियों को गुड्डे-गड्डियों वाले खिलौने मत सुनाओ उन्हे परी की कहानियां।” विजय कपूर ने “बोझ उसके जाने का बना ही रहेगा तब तक जब तक नहीं होगा अंतिम प्रणाम।”
डॉक्टर प्रसून प्रसाद ने “अपने पानी में बहती नदी बार-बार कहती, जो बस में नहीं है तुम्हारे सुंदर हो सकता है वह भी।” डॉ सुनीत मदान “क्यों होती है स्मृतियों को आकार देने की मानवीय ज़रुरत, जब आख़िर सब कुछ वापिस मिट्टी से मिलना है?” सतिंदर गिल ने “जीवन एक संग्राम सरीखा इसमें युद्ध का अंत नहीं। समय पल-पल घटता जा रहा संघर्ष अभी भी खत्म नहीं।” रजनी पाठक ने “समाईल आती तो है पर टिकती नहीं बिखर जाती।” डॉक्टर विमल कालिया ने “वो भीगती सी खिड़की वो सूखता सा चांद कुछ सीला सीला सा तू बहुत कागज़ कागज़ सा मैं।” अन्नू रानी शर्मा ने “माना तेरी राह तनिक आसान नहीं जग तो तेरी अभी पूर्ण पहचान नहीं शंका धूम्र से धूमिल है मन मुकर तेरा भय की सांकल जकड़ रही है उदर तेरा…दे शंका को मात निडर बढ़ता जा तू अपने जीवन को महाकव्य करता जा तू” परमिंदर सोनी ने “मैं हर आवाज़ में चेहरा तलाश रही हूॅं कुछ मन की मिट्टी से तराश रही हूॅं।”
रेखा मित्तल ने “स्त्री हारती हैं अपनी देह पुरुष जीत लेता हैं संसार जब पुरुष करता हैं त्याग तो बन जाता हैं “बुद्ध!” आर के सौंध ने “तिजारत अंजुमन सजा कर बैठे हैं मेरे यार जो शरीक न हो पाए उन्हें याद कर रहे है मेरे यार।” डॉक्टर नवीन गुप्ता ने “ये जो हुनर रिश्ते  निभाने का है सारा सफर दिमाग है दिल तक आने का है हर शख्स तुम्हारा हो  जाएगा तुम्हे बस ज़रा मुस्कराने का है” जैसी सारगर्भित रचनाओं का पाठ किया। गोष्ठी के दूसरे सत्र में डॉ. सपना मल्होत्रा ने अपनी सुंदर  कहानी  “नज़रिया” का पाठ किया। डॉ. विमल कालिया “विमल” ने “अनाम” नाम की संजीदा कहानी सुनाई। अश्वनी भीम ने अपने व्यंग्य  “पूरी बेइज्जती आधी इज्जत” से खूब गुदगुदाया। इनके अतिरिक्त सारिका धूपड़, सीमा गुप्ता, नवदीप बक्शी,  राम, जगदीप सिद्धू और मिक्की पासी ने भी कविताएं पढ़ीं। सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी की लाइब्रेरियन डॉ निजा सिंह खासतौर पर उपस्थित रहीं।

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