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अभिव्यक्ति की साहित्यिक गोष्ठी – विजय कपूर

Chandigarh (sursaanjh.com bureau), 5 July:
सेंट्रल स्टेट लाइब्रेरी के सहयोग से अभिव्यक्ति साहित्यिक संस्था की जुलाई माह की गोष्ठी 5 तारीख़ को लाइब्रेरी की सभागार में सफलतापूर्वक संपन्न हुई। संगोष्ठी का संयोजन और संचालन साहित्यकार और रंगकर्मी विजय कपूर ने किया। गोष्ठी की मेज़बानी कहानीकार और कवि करीना मदान ने की। इस गोष्ठी में  विभिन्न साहित्यिक  विधाओं, जैसे कविता, कहानी, और व्यंग्य में रचनाकारों ने अपनी रचनाओं की शानदार प्रस्तुति से श्रोताओं को आनंदित किया।
अभिव्यक्ति की इन गोष्ठियों का मुख्य उद्देश्य साहित्य के प्रति  रुचि को बढ़ावा देना और नए लेखकों को प्रोत्साहित करना है। इस गोष्ठी में ट्राइसिटी के अश्वनी भीम ने “आया हूं आज मैं भीषण रण के उस क्षेत्र से/ वर्णित जो महाकाव्य में है”, आर के सुखन ने देखते देखते गुजरती जाती है/ ज़िंदगी हाथ से फिसलती जाती है”,  विजय कपूर ने “मैं चलता रहता हूं दिशाहीन/ बस इसलिए  कि ठहर जाऊँ तो भीतर कुछ गिरने लगेगा/ शायद कोई ध्वनि, शायद कोई स्मृति!” शहला जावेद ने “बिखरी रहती है अक्सर पन्नें में दबी रहती है मुड़े तुड़े सफ़्हे में/ हाँ वो मेरी नज़्में हैं”, डॉ.अशोक वढेरा ने  “मुझमें, मेरा छोटा सा/ इक घर बसता है”, डॉ. निर्मल सूद ने  “चुप जब बोलता है बहुत आवाज़ करता है/ शब्द हथौड़े की सी गर्जना करते हैं” विमल कालिया ने “जीना पड़ता है यहां, मुखौटों के साथ बाबू/ मैं मुखौटों का सौदागर नकली चेहरे बेचता हूं  खरीदोगे?”, डॉ. रोमिका वढेरा ने  “सावन का हुआ है आगमन वो देखो बरसा झमझम बारिश का पानी/  हर तरफ मुस्कुराए हर पत्ती और प्राणी”, रेखा मित्तल ने “बात कुछ यूं हुई उसने थोड़ी उलफत से की / मैने कुछ नज़ाकत से थोड़ी बेतकल्लुफी में”, कृष्णा गोयल ने
“मुझे रब की इनायत जो नहीं मिलती तो/ दौर ए मुफ़लिस से मैं दो चार नहीं कर सकता”, डॉ सुनीत मदान ने “आँखों के नीचे गहराता पहरा था/
अपनों की राह देखता वक़्त ठहरा था।”
राजेंद्र सराओ ने “हाडा नी माएं इक बारी ता दुनिया द मुख वेखां गोद तेरी विच/ नहीं ता विच कब्र दे सोमां”, बृज भूषण शर्मा ने “पत्थर छोड़ गर हम गुल-ब-दस्त हो जाएँ / जमाने भर की तल्खियाँ ख़ुद-ब-ख़ुद अस्त हो जाएँ”, आर के सौंध ने “जिन्दगी बड़ी हसरत से मैं देखता हूं तुझे/ हवा की तरह तू मुझे छू कर गुज़र जाती है”, अपूर्वा रवि सौंध ने “कुछ किस्से आज दोहराते हैं/ चलो आज खुद से बतियाते हैं”, अनुरानी शर्मा ने “कट जायेंगी दुष्कर राहें/ साथ चलें कर लें शिकवे और सलाहें”, डॉ अर्चना आर सिंह ने “ऐसा हुआ ही नहीं/ और अगर हुआ भी, तो इतना बुरा नहीं”, नवनीत बक्शी ने “मेरे लिए तो ज़िन्दगी उसी दिन ठहर गई थी/ तुम मुझे छोड़ के जिस दिन, जिस पहर गई थी”, प्रतिभा सिंह ने “खिड़की के उस पार/ धुंधली सी यादें बचपन की”, खुशनूर कौर ने मेरी अजे गल न मुक्की/ तुसा ने गल मुका दिती”, इनके अलावा खनक मदान और राजेश शर्मा  ने बेहद दिलचस्प और विचारशील कविताओं से मंत्रमुग्ध किया। गोष्ठी के दूसरे सत्र में करीना मदान ने दिलचस्प कहानी “थियोडोर” का सुंदर पाठ किया, डॉ विमल कालिया ने संजीदा कहानी देर भली की एनीमेटेड प्रस्तुति दी। अश्वनी भीम ने व्यंग्य “प्रथम क्या” से खूब गुदगुदाया। हरमन रेखी ने अतः टू लिट्टी नाम का संजीदा संस्मरण पढ़ा। प्रस्तुत की गई रचनाओं पर स्वस्थ आलोचना और रचनात्मक समीक्षा की गई। अभिव्यक्ति में हर विचार का सम्मान किया जाता है, ताकि यह साहित्य के विकास में सहायक सिद्ध हो सके। इस मौके पर लाइब्रेरियन डॉ. निज़ा सिंह खास तौर पर उपस्थित रहीं।

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